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जिमीकंद की खेती

औषधीय जिमीकंद की खेती कैसे करें (Elephant Yam in Hindi)

औषधीय जिमीकंद की खेती कैसे करें (Elephant Yam in Hindi)

जिमीकंद यानी ओल औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसकी खेती यहां प्राचीन काल से ही होती रही है।अनेक आधुनिक सब्जियों से पूर्व कंद, मूल एवं फलों का विवरण वेद, पुराणों में मिलता है। 

बिहार राज्य में गृह वाटिका से लेकर व्यवसाहिक स्तर पर इसकी खेती की जाती है। इसे हल्के छायादार बागों में भी सहयोगी फसल के रूप में लगाया जा सकता है। इससे बवासीर, पेचिस, दमा, ट्यूमर, उदर पीड़ा, फेंफड़ों की सूजन, रक्त विकार आदि में उपयोगी बताया जाता है।

जिमीकंद की खेती की संपूर्ण जानकारी

किसी भी कंद वाली फसल के लिए उत्तम जल निकासी वाली एवं भुरभुरी मिट्टी अच्छी रहती है। कंद वाली फसलों के लिए खेत की जुताई करने के बाद बार बार पाटा लगाना चाहिए ताकि खेत में ढ़ेल न बनें। 

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हर जगह होने लगी खेती

जिमीकंद की खेती अब बिहार के अलावा समूचे देश में होने लगी है। इसकी फसल करीब 225 दिन में तैयार होती है। इससे 40 से 50 टन कंद प्राप्त होते हैं। 

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कैसे करें बुवाई

जिमीकंद का बीज आलू की तरह कंद को पूरा लगाकर या काटकर लगाया जाता है। इसके लिए 250 से 300 ग्राम का कंद उपयुक्त होता है। कटिंग वाले कंदों में अंकुरण के लिए कलिका, आंखों का होना आवश्यक है।

बीजोपचार

कंदों की बिजाई करने से पूर्व इनका उपचार जरूर करना चाहिए। इसके लिए 5 ग्राम एमीसान एवं तीन ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर कंदों को आधा घण्टे तक दवा वाले पानी में डालकर निकालना चाहिए। 

इसके अलावा कार्बन्डाजिम एवं बावस्टीन की दो ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर कंदों को उसमें डुबोकर भी उपचार करना चाहिए। दोनों तरह की क्रियाओं में से केवल एक ही तरह की दवाओं का प्रयोग करेंं। 

बीज दर

250 ग्राम के कंद को 75 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाने से 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर, 500 ग्राम के कंद लगाने पर 80 क्विंटल ,250 ग्राम का कंद एक मीटर की दूरी पर लगाने से 25 क्विंटल , 500 ग्राम के कंदों को एक मीटर पर लगाने के लिए 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर बीज की जरूरत होती है। 

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कब होती है कंदों की बुवाई

जिमीकंद की बिजाई अप्रैल से जून तक की जाती है। समतल खेत में बुवाई के लिए सड़ी गोबर की खाद डालने के अलावा एनपीके का उपयोग मिट्टी जांच के आधार पर करें। 

जुते खेत में 70 से 90 सेंटीमीटर दूरी पर कुदाल से गड्ढ़ा खोदकर 20 से 30 सेमी गहरी नाली खोदकर उनमें कंदों को रोप देते हैं। नाली में कंदों को ढक दिया जाता है। बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि कंद का कलिका वाला हिस्सा उूपर की तरफ रहे।

कितनी डालें खाद

कंद की अच्छी उपज के लिए सडी गोबर की खाद 15 क्विंटल एवं नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश 80,60, 80 किलोग्राम के अनुपात में प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। फास्फोरस की पूरी मात्रा जमीन में मिला दें। 

बाकी तत्वों को कंदों पर मिट्टी चढ़ाते समय 60 से 80 दिन की फसल होने पर जमीन में डालें। शूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग भी जोत में मिलाकर करने से उत्पादन बढ़ता है। 

कंदों के अच्छे अंकुरण के लिए धान के पुआल आदि से कंदों को ढ़क देना चाहिए। इससे जमीन में नमी बनी रहती है और गर्मी का प्रभाव भी नव अंकुर पर नहीं पड़ता। इस प्रक्रिया को अपनाने से खरपतवार भी नहीं उगते।

सिंचाई

कंदों को बरसात से पहले हल्की दो सिंचाई आवश्यक होती हैं। निराई एक माह बार और दो से तीन माह बाद करनी होती है।

जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद

जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद

जिमीकंद को सूरन या बिहार जैसे राज्य में ओल भी कहा जाता है, यह असला में गर्म जलवायु में उगाया जाने वाला पौधा है। जिसकी सब्जी से ले कर अचार तक बनाई जाती है और उत्तर भारत से ले कर दक्षिण भारत तक में इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है। यानी, अगर किसान इसकी खेती करे तो निश्चित ही उनके जीवन में आनंद आ जाएगा।

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कैसी हो मिट्टी

ओल के लिए सबसे अच्छी मिट्टी भूरभुरी दोमट मिट्टी मानी जाती है, ओल को अधिक जल जमाव वाले क्षेत्र में नहीं उगाया जाना चाहिए, इससे किसानों को नुकसान हो सकता है। 

ओल की खेती के लिए 5.5 से 7.2 तक की पीएचमान वाली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। ओल की कई किस्में बाजार में आजकल उपलब्ध हैं, किसान अपनी जरूरत के हिसाब से इसमें से कोई एक किस्म का चुनाव कर सकते हैं। 

जैसे, गजेन्द्र, एम -15, संतरागाछी, कोववयूर आदि। किसान भाइयों को अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु को ध्यान में रखते हुए ओल की किस्म का चुनाव करना चाहिए ताकि वे ओल की खेती से बेहतर कमाई कर सके।

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सूरन यानी जिमीकंद की खेती बारिश के मौसम से पहले और बाद में की जानी चाहिए, फिर भी इसकी खेती के लिए अप्रैल से जून के बीच का समाया सबसे बेहतर माना जाता है। 

किसान भाई ध्यान रखे कि, इसकी बुवाई से पहले इसके बीजों का उपचार अच्छी तरह से कर लिया गया है। खेत की अच्छे से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें, ताकि खेत की मिट्टी में अच्छे से धूप लग सके। 

आप चाहे तो जुटे हुए खेत में पुरानी गोबर की खाद को डाल सकते हैं। आप ओल बोने से पहले अपने खेत में पोटाश 50 KG, 40 KG यूरिया और 150 KG डी.ए.पी. का इस्तेमाल अवश्य करें ताकि आपको बेहतर उपज मिल सके। 

बीजों को क्यारी बना कर लगाए क्योंकि ओल के पौधे होते हैं, जो अगर क्यारी में लगे हो और एक निश्चित दूरी बना कर रोप गए हो तो आपको ओल का फल अच्छे आकार का मिल सके।

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इसकी खेती में यह ध्यान रखना है, कि बरसात के समय सिंचाई नहीं करनी है। हां, सर्दी के मौसम में इसके पौधों को 15-20 दिन सिंचाई की आवश्यकता होती है। 

एक अच्छी बात यह है, कि इसके पौधे के बीच बहुत अधिक मात्रा में खर-पतवार नहीं उगते। लेकिन, फिर भी आपको इसका ध्यान रखना चाहिए, ऐसा करने से पौधों में रोग लगाने की संभावना कम हो जाती है। 

ओल के खेत के लिए आपको दस से पंद्रह क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, यूरिया, फास्फोरस और पोटाश 80:60:80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए।

बेहतर कमाई

ओल का बाजार भाव तकरीबन 30 से 50 रुपए प्रति किलो तक होता है। एक हेक्टयर में आप 70 से 80 टन ओल उगा सकते है, इस हिसाब से देखे तो किसान भाइयों को एक बेहतर कमाई का जरिया ओल के रूप में मिल सकता है। 

तो देर किस बात की, सर्दी का मौसम है, तब भी आप सिंचाई के बेहतर प्रबंधन के साथ ओल की खेती शुरू कर सकते हैं।